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Delhi Dreams :: सपने दिल्ली के

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सपने दिल्ली के
 पी. के. खुराना
आखिरकार छत्तीसगढ़ के शहर कोरबा में राज्य सरकार के एक बिजली संयंत्र को लोकार्पित करते हुए भाजपा के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों को स्वीकार करते हुए उनकी तारीफ कर ही दी। इससे पहले वे हमेशा भाजपा द्वारा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के आधिकारिक प्रत्याशी घोषित किये जाने के विरोध में नज़र आये। उन्होंने कई अप्रत्यक्ष संकेत भी दिये। कभी सुषमा स्वराज को खुद से भी बढ़िया वक्ता बताकर, कभी शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करते हुए यह कह कर कि मध्य प्रदेश जैसे पिछड़े राज्य को उन्नति के पथ पर लाकर उन्होंने ज़्यादा बड़ा काम किया है, उन्होंने अपने मनपसंद लोगों को आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया। परंतु अंतत: संघ और राजनाथ सिंह की दृढ़ता के आगे उन्हें झुकना पड़ा। इससे नरेंद्र मोदी की राह का एक बड़ा रोड़ा हटा है, पर शायद उनका असली काम अब शुरू हुआ है।

कई संयोग कई बार किसी बड़े बदलाव का कारण बन जाते हैं। मोदी दृढ़-निश्चयी हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन वे विरोध बर्दाश्त नहीं कर सकते, इसमें भी कोई संदेह नहीं है। अपने ही तत्कालीन गृह मंत्री हीरेन पंड्या की हत्या को लेकर भी उन पर उंगलियां उठी हैं। शंकर सिंह वाघेला, केशु भाई पटेल, संजय जोशी और गोर्धन ज़दाफिया का हश्र सबके सामने है। हीरेन पंड्या, केशु भाई पटेल के पक्के समर्थक थे। केशु भाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया गया और विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दी गई। लेकिन अंतत: वे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मनाने में सफल रहे और भुज में आये विनाशकारी भूकंप के बाद स्थिति संभालने में विफल रहने, कमजोर प्रशासन, बढ़ते भ्रष्टाचार और बिगड़ती सेहत आदि के कारण जब भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व किसी नये मुख्यमंत्री की तलाश में था तो मोदी ने अपनी गोटियां ऐसी चलीं कि वे मुख्यमंत्री बन गए। सन् 2002 के दंगों के समय मोदी के रुख की आलोचना आज तक होती है लेकिन तब तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री और अब मोदी के सबसे बड़े विरोधी लालकृष्ण आडवाणी ही उनके संरक्षक थे और आडवाणी के ही कारण मोदी की गद्दी बची रही। नरेंद्र मोदी के विरोध में खड़े आडवाणी का असली दुख ही यही था कि उनका अपना ‘चेला’ ही उन्हीं की जगह ‘पीएम इन वेटिंग’ बनने के सपने देख रहा है। लेकिन अंतत: उनकी नहीं चली और नरेंद्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का आधिकारिक प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है।

संयोग सिर्फ यह ही नहीं था कि वे आडवाणी के समर्थन से गुजरात के मुख्यमंत्री बने और गद्दी पर टिके रहे, संयोग यह भी था कि गुजरात में विदेशी निवेश लाने के अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ नामक एक अभियान की शुरुआत की और इसके प्रचार-प्रसार का जिम्मा एक बड़ी विदेशी जनसंपर्क और लॉबिंग कंपनी ‘एप्को वर्ल्डवाइड’ को सौंपा जिसने मोदी को प्रधानमंत्री पद का सपना दिखाया और उस दिशा में काम शुरू कर दिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के आधिकारिक प्रत्याशी बनने की राह में आने वाली अड़चनों को हटाने में उनकी छवि का बहुत बड़ा हाथ है और इस छवि के निर्माण में एप्को की भूमिका कम नहीं है। शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि उनकी सफलता को देखते हुए भाजपा शासित राज्यों के एक अन्य मुख्यमंत्री ने चुपके-चुपके एक अन्य विदेशी जनसंपर्क एवं मार्केटिंग रिसर्च कंपनी को अपने प्रचार का ठेका दिया है।

गुजरात के दंगों के बाद सन् 2002 के विधानसभा चुनावों के समय नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध नफरत की ऐसी आंधी चलाई जिसमें सारा विरोध बह गया और उनके नेतृत्व में भाजपा ने गुजरात की 182 सीटों वाली विधानसभा में 127 सीटें जीतीं। सन् 2007 के चुनावों के समय उन्होंने आतंकवाद का मुद्दा उठाया और अफजल गुरू की फांसी की मांग करते हुए एक बार फिर अप्रत्यक्ष रूप से हिंदु कार्ड खेला और 122 सीटें जीत कर मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पारी जारी रखी। लेकिन प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना शुरू करने के बाद उन्होंने 2011 और 2012 में कई बार उपवास रखा और मुस्लिम समुदाय का दिल जीतने का प्रयत्न किया। हालांकि उन्होंने हमेशा इस बात से इन्कार किया है कि ये व्रत किसी खास समुदाय का दिल जीतने के लिए रखे गए थे। एक और कदम आगे बढ़ कर अब गुजरात के भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने नरेंद्र मोदी को जन्मदिन के उपहार के रूप में अल्पसंख्यक समुदाय के एक लाख सदस्यों को पार्टी से जोड़ने की मुहिम का ऐलान किया है। यह मुहिम गुजरात के सभी 33 जिलों में आरंभ की गई है।

एक तरफ मोदी की तानाशाही प्रवृत्ति है तो दूसरी ओर उनकी उपलब्धियां भी बेमिसाल हैं। मोदी की प्रशासनिक सफलताओं ने गुजरात को विकास का नया चेहरा दिया है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में भू-जल के संरक्षण के लिए बहुत बढ़िया काम हुआ और 2010 आते-आते जमीन के नीचे का जलस्तर जो 2004 में निराशाजनक स्तर अपने पूर्व स्तर पर आ पहुंचा, इससे बीटी-कपास की खेती बढ़ी और किसानों में समृद्धि आई। नरेंद्र मोदी ने संघ के स्वदेशीकरण की नीति को छोड़ कर निजीकरण और विदेशी निवेश की ओर ध्यान दिया जिससे गुजरात में औद्योगिक विकास हुआ। गुजरात में उद्योग लगाने वाले उद्योगपतियों को प्रशासन का अधिकाधिक सहयोग मिलता है और अलग-अलग विभागों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने में सालों का इंतजार नहीं करना पड़ता। इससे औद्योगिक विकास को गति मिली है। तो भी यह विकास का एक तरफा माडल ही सिद्ध हुआ है। गुजरात के विकास में शहरी मध्य वर्ग एवं उच्च वर्ग की प्रगति ज़्यादा हुई है और विकास का लाभ गरीबों और ग्रामीणों तक नहीं पहुंचा है, तो भी कांग्रेस के कुशासन से यह बहुत-बहुत बेहतर है।

राहुल गांधी मनरेगा, खाद्य सुरक्षा बिल, रोज$गार गारंटी योजना और भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर गाल बजा रहे हैं। राजस्थान के बारां जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने मनमोहन सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की पर यह नहीं बताया कि यह सब चुनाव से ठीक पहले ही क्यों हो रहा है? घोटालों से घिरी कांग्रेस सरकार के पास कहने को ज़्यादा कुछ नहीं है, मनमोहन सिंह का जादू उतर चुका है और राहुल गांधी युवाओं को प्रेरित करने में असफल रहे हैं। लेकिन इसी वर्ष जनवरी में पार्टी का उपाध्यक्ष बनने पर राहुल गांधी ने एक बड़ी मार्के की बात कही थी कि कांग्रेसी भी नहीं जानते कि कांग्रेस चलती कैसे है और चुनाव कैसे जीत लेती है? पर इसके विश्लेषण में उन्होंने कहा था कि किसी जाति, धर्म या क्षेत्र का दल कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि कांगे्रस में हिंदुस्तान का डीएनए है, विपक्ष के लोग इसे नहीं समझ पाते। हां, यह सच है।

मोदी यह समझ चुके हैं, इसीलिए वे एक हिंदुवादी पार्टी के मुख्यमंत्री होते हुए भी सारे कार्ड चल रहे हैं। दिल्ली की गद्दी का सपना साकार करने के लिए उन्होंने रास्ते की एक बड़ी बाधा पार कर ली है, अगली बाधाओं से वे कैसे पार पाते हैं, यह देखना सचमुच रुचिकर होगा। ***

Sapne Dilli Ke (Delhi Dreams)
By :
P. K. Khurana
(Pramod Krishna Khurana)
प्रमोद कृष्ण खुराना

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